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थ्री ईडियट्स पर तो बहुत चर्चा हो गई। फिल्म से लेकर किताबों और अखबारों तक। मगर एक चौथा ईडियट भी है। यह वास्तव में ईडियट है, और समस्या यह है कि यह हर कहीं हमारे आसपास ही होता है। अलग-अलग रूपों में , अलग-अलग शक्लों में। कभी यह साफ सुथरी नई इमारत के किसी कोने में पान की पीक थूक कर उसे गंदा करता नजर आता है, तो कभी बस और रेल के सफर में बीडी फूंकता है। किसी की परेशानी से इसका कोई लेना देना नहीं होता। आम तौर पर इसके हाव भाव देखकर कोई इसे रोकने टोकने की हिम्मत भी नही़ जुटा पाता, और अगर किसी ने हिम्मत जुटा कर इसे टोक दिया तो समझो मुसीबत मोल ले ली। यह हमेशा लड़ने मरने पर आमाद रहता है।
सिर्फ इतना ही नहीं यह चलते हुए ट्रैफिक के बीच में सड़क पार करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानता है। अगर यह किसी वाहन पर हुआ तो कब कहां अचानक मुड़ जाएगा इसका अंदाजा आप नहीं लगा सकते। नतीजा एक्सीडेंट। आप कुछ नहीं कर सकते। कभी कभी तो इसे पहचानना तक मुश्किल होता है। पूरे सूट बूट में यह बड़ा ही सभ्य और सुसंस्कृत दिखता है। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि यह चौथा ईडियट है। पता तो तब चलता है जब यह सड़क के बीच में अपनी कार रोक कर सामने से दूसरी कार में आ रहे अपने मित्र से बातचीत में मशगूल होता है और इसकी कार के पीछे के वाहन हॉर्न पर हॉर्नबजा रहे होते हैं। यह चौथा ईडियट दफ्तरों से जाते समय सारी लाइटें, पंखे और हीटर चलता हुआ छोड़ जाता है। छोटे कस्बों में यह ईडियट बिजली के तारों पर कटिया डालता नजर आता है। पॉलीथिन बैग में कूड़ा भर कर नाले और नालियों में डालना इसका खास शगल है। इसका खामियाजा उस समय सभी को भुगतना होता है जब इसके द्वारा डाले गए पॉलीथिन बैग से नाले-नालियां और सीवर लाइनें चोक हो जाती हैं। पूरी सड़क गंदे पानी से भर जाती है, जिसके बीच से गुजरना हमारी मजबूरी होती है।
यह चौथा ईडियट ही है जो सार्वजनिक स्थलों पर शौचालय के बाहर खड़ा होकर लघुशंका का निवारण करता नजर आता है। यह जानवरों की चर्बी से घी बना देता है। आटा, दाल, चावल, चाय, चीनी और खाने की अन्य चीजों में मिलावट कर देता है। पेट्रोल और डीजल में इसके द्वारा की गई मिलावट से हमारे वाहन खराब कर देता है। यह कहीं भी हमारा पीछा नहीं छोड़ता। यह सर्व व्यापी है। इससे बच कर जीना मुश्किल है। यह रेलवे स्टेशनों पर रिजर्वेशन टिकट ब्लैक करता है। यह टिकट ब्लैक करने वालों से गहरा रिश्ता रख कर अपना कमीशन पाता है। यह सिनेमाघरों से लेकर मंदिरों तक आपका पीछा नहीं छोड़ता। यह कभी पंडे और पुजारियों की शक्ल में तो कभी पर्यटन स्थलों पर गाइड और टैक्सी ड्राइवरों की शक्ल में आप को चूना लगाने को तैयार रहता है।
यह कितना प्रभावी है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इसने हमारी धार्मिक भावनाओं तक को कैश करना शुरू कर दिया है। शनिवार को यह छोटी-छोटी बाल्टियों में शनिदान मांगता नजर आता है तो दिन में घरों में अकेली रह गई महिलाओं से जेवर साफ करने के नाम पर ठगी करता है। बड़े बड़े अधिकारियों के दफ्तर के आस-पास तो यह बहुतायत में पाए जाते हैं। यह कोई भी काम सीधे नहीं होने देते। चालू भाषा में कुछ लोग इन्हें दलाल एवं कुछ लोग सभ्य भाषा में इन्हें कमीशन एजेंट भी कह देते हैं। इन्हीं के चलते किसी भी दफ्तर में अधिकारी और बाबू सीधे मुंह बात करने को तैयार नहीं होते। सच कहूं, तो यह चौथा ईडियट हमारे लिए एक बहुत बड़ी मुसीबत बन कर रह गया है, और हम हैं कि थ्री ईडियट से आगे सोच ही नहीं पा रहे हैं। अरे भाई, थ्री ईडियट्स को छोडि़ए और यह सोचिए कि इस चौथे ईडियट का क्या करें……।
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