- 13 Posts
- 99 Comments
उस रात तो मैं हतप्रभ रह गया। अलीगढ़ के नुमाइश मैदान में स्थित गेस्टहाउस के कमरे में मैं था और फिल्मी दुनियां के जाने माने गीतकार संतोषानन्द। वह दैनिक जागरण द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में भाग लेने आए हुए थे। अभिरुचि के स्तर पर साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते संतोषानन्द से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो छंदोबद्ध कविता से लेकर कविता, अकविता, नई कविता, गद्य काव्य और तेवरी आंदोलन तक पर चर्चा हुई। संतोषनन्द भी पूरे मूड में थे, लेकिन कहीं न कहीं उम्र की ढ़लान उतर रहे संतोषानन्द के अंदर कुछ ऐसा था जो उन्हें भीतर ही भीतर खाए जा रहा था। मैने भी उनके उसी दर्द को थोड़ा कुरेदने की कोशिश की तो नतीजा सामने था। डाक्टर हरिवंश राय बच्चन का जिक्र आते ही वो बिफर पड़े-‘ बच्चन भी कोई कवि थे ? बेसिकली वह प्रोफेसर थे और एक अच्छे अनुवादक। जिस मधुशाला के लिए बच्चन को पहचाना जाता है वह मधुशाला उन्होंने उमर खय्याम की शायरी के थाट्स चुरा कर लिखी।‘ सचमुच, संतोषानन्द की इस बात को सुनकर मैं हतप्रभ रह गया। जिस मधुशाला को काब्य जगत में एक कालजयी रचना के रूप में पहचान मिली उसके बारे में ऐसी टिप्पणी, मैं तो सोच भी नहीं सकता था। और, संतोषानन्द अपनी रौ में बोले जा रहे थे-‘अब कविता नहीं, कविता का धंधा हो रहा है। चुटकुलेबाज मजे ले रहे हैं। अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं से थाट्स चुरा कर गीत लिखे जा रहे हैं। चाहे नीरज हों या कुंवर बेचैन, सब चोर हैं। इनके पास अपना मौलिक कुछ भी नहीं है।‘ मैं चुपचाप संतोषानन्द के चेहरे को देख रहा था, क्योंकि जिन कवियों के बारे में उन्होंने इतनी तल्ख टिप्पणी की वह न सिर्फ मेरे लिए आदरणीय हैं बल्कि साहित्य में रुचि रखने वाले तमाम युवाओं का रोलमाडल भी हैं।
बातचीत का सिलसिला और आगे बढ़ा तो मैने सवाल उछाला-‘एक कवि के रूप में, अपने बारे में क्या सोचते हैं आप ?’
संतोषानन्द ने कहा-‘ एक दौर था जब फिल्मों में ‘ ऐ मालिक तेरे बंदे हम ’ जैसे गीत लिखे जाते थे, और गीतकारों को भजन लिखने वाला माना जाता था। उसे दौर में मैने भाषा को प्लेन करने का काम किया और सीधी सपाट भाषा में मौलिक थाट्स के साथ ‘ इक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है। जिंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है ‘ जैसा गीत लिखा। दरअसल यह मौलिक थाट इस लिये था क्योंकि यह गीत मैने अपनी पत्नी को सामने रख लिखा था। इस गीत की एक-एक पंक्ति मेरे जीवन का भोगा हुआ सच है। अब, वह शख्स जिसके बारे में सुना है कि उसने शराब को कभी हाथ भी नहीं लगाया……….मधुशाला कैसे लिख सकता है ?
बातचीत अभी और लम्बी चलती मगर, इसी बीच मंच से बुलावा आ गया। कवि सम्मेलन शुरू होने वाला है। संतोषानन्द जी को अध्यक्षता करनी है। सो, उनसे आज्ञा लेकर मैं भी सभागार की ओर चल दिया लेकिन बच्चन, नीरज और कुंवर बेचैन के लिए उन्होंने जिस तरह के अपशब्दों का प्रयोग किया था वह मेरे जहन से निकल नहीं पा रहे हैं। मैं चाहता हूं कि इस पर संतोषानन्द के इस बयान पर साहित्य की दुनिया के विद्वान आगे आएं और बताएं कि क्या हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ उमर खय्याम की शायरी से थाट्स चुरा कर लिखी गई ?
Read Comments