vichar
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आग को आग लगाने पे खबर बनती है। बूंद से, सागर को चुराने पे खबर बनती है।।
किसने पूछा है, उसके घर की बहू, बेटी है।
यहां दुलहन को जलाने पे खबर बनती है।।
इस दौर में, ईमान-ओ-इंसाफ की बातें, तौबा।
गांधी को अय्याश बताने पे खबर बनती है।।
शहीद हो गए सरहद पे न जाने कितने।
यहां कसाब के खाने पे खबर बनती है।।
यां तो रुश्दी भी हैं, तस्लीमा ओ हुसैन, मगर। मां की, नंगी तस्वीर बनाने पे खबर बनती है।।
भौंकते रहते हैं, दिन रात कलम के कुत्ते।
खादी के बेशर्म बहानों पे खबर बनती है।।
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