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मैने जब होश संभाला तो देश आजाद हो चुका था। उस समय आजादी का मतलब भी नहीं जानता था। थोड़ा बड़ा हुआ तो जीवन का पहला जन आंदोलन जेपी आंदोलन के रूप में देखा। और फिर उसके बाद, वक्त बीतता गया। पीढि़यां जवान हो गईं। वह पीढि़यां जिन्होंने जन आंदोलन और जन क्रांति के पाठ किताबों में तो पढ़े, लेकिन वह कभी उसका हिस्सा नहीं बन पाए। आज अन्ना हजारे ने जनलोकपाल और भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर जो शंखनाद किया है, उसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। राष्ट्रवाद का ऐसा ज्वार, जेपी आंदोलन को छोड़कर पहले कभी नहीं देखा गया। एक तरह से कहें तो, अन्ना के राष्ट्रवाद और जनक्रांति में शामिल होकर हमारे देशवासियों ने भारतीय संविधान की पढ़ाई पूरी की है। संसद से लेकर सड़कों तक जो कुछ भी देखा और सुना जा रहा है भले ही राजनीति के गंदे गलियारों में इसका परिणाम जो भी हो, कदम कदम पर बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का दंश झेल रहे, कम्प्यूटर, जींस, फैशन, फास्ट फूड और आईपॉड को अपनी जिंदगी मान लेने वाले युवाओं में एक विशेष तरह की जाग्रति आई है। इसकी जरूरत भी थी। आलम यह है, अब अन्ना में ही देश के प्राण बसते हैं। उन्होंने इस देश के उंनीदेपन को खत्म कर इसकी सोई हुई जवानी को जगा दिया है। सरकार के इरादे अब भी नेक नहीं हैं। रामलीला मैदान में शुरू हुए बाबा रामदेव के आंदोलन की भ्रूण हत्या करने के बाद उसके इरादे और भी खतरनाक हो गए हैं। अन्ना के आंदोलन को लेकर भी उसके इरादे नेक नहीं थे। शायद उसे अभी भी इस बात का अंदाजा नहीं कि अन्ना ने भ्रष्टाचारमुक्त भारत के लिये आंदोलन का जो हवनकुंड तैयार किया है, उसमें लोग प्राणों की आहुति देन से भी नहीं हिचकेंगे। संसद में अन्ना समर्थक एक युवक की वंदेमातरम की गूंज उसका मुंह दबा देने से, कान बंद कर देने से रुकने वाली नहीं है। अभी तो ये अंगडाई है। यह भी हो सकता है कि कल एक नहीं एक लाख युवा संसद में घुस जाएं और वंदेमातरम का जयघोष करें, तो क्या करेगी सरकार। किस किस का मुंह बंद करेगी।
मैं चाहता हूं कि सत्य, अहिंसा और भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह संघर्ष अपनी परिणति तक पहुंचे। राजनीति की गलाजत दूर हो, आम जन के लिए एक समृद्ध विकल्प तैयार हो, साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ वह मानस तैयार हो जिसमें हम अपने व्यक्तिगत हितों को त्याग पर भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने के लिए खड़े हों। इसके लिए जरूरी है कि युवाओं की ऊर्जा, जोश और जज्बे को बनाए रखा जाए।
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