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सच कहूं अन्ना ! है तो छोटे मुंह बड़ी बात, लेकिन जबतक कह नहीं लूंगा चैन नहीं पाऊगा। वसीम वसीम बरेलवी का एक शेर याद दिलाता हूं-‘ हमें जब भी देखना, बार-बार देखना, हम अपने चेहरों से इतने नजर नहीं आते ‘। इस शेर में ‘ हम ‘ शब्द का प्रयोग आज के संदर्भ में स्वामी अग्निवेश और ओमपुरी जैसों की ओर ही इशारा करता है। यह वही लोग हैं जिनका एक चेहरा आपने रामलीला मैदान में अनशन के दौरान आपने अपने मंच पर देखा था। शेर की तरह दहाड़ रहे थे ये। इन्होंने वहां वह सबकुछ कहा जो इस देश की जनता पिछले साठ सालों से सिर्फ अपने घरों में ही नहीं बल्कि खुलेआम सड़कों पर, गली के नुक्कड़ों, चौराहों और चाय पान की दुकानों पर कहती आ रही है। मगर उनमें से कोई किसी से माफी मांगने नहीं गया। सिर्फ इस लिए नहीं गया क्योंकि वह उसके दिल से निकलने वाले शब्द हैं। मगर अफसोस, आपके मंच से देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाने की मुहिम का झंडा उठाने का दम भरने वाले यह मुखौटाधारी विशेषाधिकार हनन के एक नोटिस से ही थर्रा गए।
ऐसे लोगों से होशियार रहना अन्ना, क्योंकि बहुत भीड़ है तुम्हारे चारों ओर ऐसे लोगों की। तुम्हारी मुहिम के साथ जुडने के पीछे इनके निहित स्वार्थ हैं। ये दोहरे चेहरे वाले तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेंगे। अगर भरोसा ही करना है तो ऐसे भगत सिंहों, ऐसे राजगुरुओं, ऐसे सुभाषों, ऐसे चंद्रशेखरों पर करना जो तुम्हारे मंच के आसपास तो नजर नहीं आएंगे लेकिन संसद के गलियारों में बिना किसी विशेषाधिकार हनन और लाठी गोली से डरे ‘ वंदेमातरम का नारा ‘ लगाने की हिम्मत उनमें ही होगी। आने वाले कल में तुम्हारे आंदोलन का अलम यही जां बाज होंगे। ऐसे लोगों का क्या करना जो मंच पर वाहवाही लूटने के लिए सच तो बोलते हैं, लेकिन बाद में माफी मांग कर अपने को पूरे मामले से अलग कर लेते है जबकि सच यह है कि सच कहना, सुनना और उसे बर्दाश्त करना, तीनों के लिए बहुत बड़ा जिगर चाहिए। बहुत कर चुके सत्यम ब्रुयात प्रियम ब्रुयात का पालन। अब तो बस, उस जज्बे की जरूरत है, जिसमें ‘ सच कहना अगर बगावत है तो, समझों हम भी बागी है ‘ की हुंकार भरने की जरूरत है। इस देश का नौजवान इसके लिए तैयार बैठा है। सांसद रामशंकर राजभर, प्रवीण सिंह ऐरन, जगदंबिका पाल, डॉ. विनय पांडेय, पीएल पुनिया, मिर्जा महबूब बेग, हर्षवर्धन, कमल किशोर, प्रेमदास कठेरिया जैसे लोग चीखते है तो चीखते रहें, आपके पास सिर्फ किरण बेदी और केजरीवाल जैसे लोग ही नहीं बल्कि दिल्ली में राजघाट के सामने खुद को आग के हवाले करने वाले दिनेश यादव जैसे करोड़ों नौजवान हैं जो भ्रष्टाचार मुक्त भारत की आपकी मुहिम में अपनी जान देने को तैयार हैं।
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