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तीन ग़ज़लें

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चलके तो देख
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बेयकीनी पे यकीं करके तो देख।
मंजि़लें मिल जाएंगी, चलके तो देख।।
बढ़ चला है कारवां दिल्‍ली की ओर,
ढूंढते रह जाओगे तुम इसका छोर,
ये धुधलकी शाम, वर्दी के हुजूम,
मौसमों की मार, औ छिनता सुकून,
गहरी अंधेरी रात भी ढल जाएगी,
खामोशी के साथ सिंदूरी सुबह जब आएगी,
मस्‍त कर देगी कसम से जीस्‍त को।
उम्‍मीद के पैमाने में बस ढल के तो देख।।
हों भले ही रास्‍ते कांटों भरे,
हम अमन के दोस्‍त हैं क्‍यूं कर डरें,
है दिलों में आग, जज्‍बों में जुनून
खौल उट्ठा है यहां जनता का खून,
चुप भी रहे तो काम ये कर जाएंगे,
एक अन्‍ना ही नहीं, हर घर से अन्‍ना आएंगे,
बारूद है ये, राख के धोखे में छूना मत इसे
खाक कर देंगे, मसल करके तो देख।।

मंजि़लें मिल जाएंगी, चलके तो देख।।

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मर जाऊंगा मैं

कानून की सब आस्‍तीनें मोड़ कर जाऊगा मैं,
गोलियां भी गर चलीं, सीने पे ही खाऊगा मैं।
आसमां में छेद करने का है, यूं तो हौसला,
सच की लाशों पर हुआ है, झूठ का हर फैसला,
टूट जाऊंगा चौखट पर खड़े बच्‍चों को देख,
जब भी खाली हाथ, अपने घर तलक जाऊंगा मैं।।
रोक लेगा कदम मेरे उस वखत मेरा जमीर,
लौट जाएगा कभी दर से कोई भूखा फकीर,
लुट रही हो जहां गैरत, चुप रहूं, कैसे रहूं,
मुर्दा नहीं हूं, मुंह फेर के ऐसे गुजर जाऊंगा मैं।।
बराबरी के हक की खातिर, मुझको ये मंजूर है,
दिल नहीं है आज दरिया, जलता हुआ तंदूर है,
अब रहूं या ना रहूं, ये सोच कर आया हूं मैं,
हार कर लौटा तो वैसे, खुद ही मर जाऊंगा मैं।।

कानून की सब आस्‍तीनें मोड़ कर जाऊगा मैं,
गोलियां भी गर चलीं, सीने पे ही खाऊगा मैं।
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दो कदम और

दो कदम और जरा आपको चलना होगा,
मेरा दावा है जमाने को बदलना होगा।।
’ह’ से हिंदू है अगर, ‘म’ से मुसलमां कोई,
मिलके दोनों का अब हम में बदलना होगा।।
वो जो फुटपाथ पे किस्‍मत के भरोसे बैठे,
आज उठकर उन्‍हें फौलाद में ढलना होगा।।
अब तो ये जिद है, दिलचाहे नजारे देखें,
गर नजर है तो, नजारों को बदलना होगा।।
सुन ले हर शख्‍स से आवाज जहां तक पहुंचे,
हम जो सुलगेंगे तो फिर, आप को जलना होगा।।
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